" Halahal Paan Karte Maha Mrityunjay Mahakaal Shiv Shankar " |
हाय ! कितना विष व्याप्त है
इस काजल कलुष गरल कलियुग मेँ
सकल विषाद ज़हर व्याप्त है
मानव के अंतर विशाल मेँ
अब तो कुछ करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
इस दानवयुगी मनोवृत्ति का
विष हलाहल आप को पीना ही होगा
जिस मानव को जन्म दिया है
उसका जीवन जीना होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
एक बार इस वसुंधरा पर आओ
देखो कैसा कठिन समाज है
केवल चीत्कारोँ से भरा
अंबर विशाल रोता ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
न जाने मानव मानव का
क्योँ बैरी बन बैठा है
भाई भी भाई से न जाने
क्योँ लोहा ले बैठा है...
कहीँ निक्रिष्ट राजनीति है
कहीँ कोई पुनीत वातसल्य को त्याग
वासना मेँ लिप्त बैठा होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
जाने कहाँ लुप्त हो गयी
वो सतयुगी मार्धुय प्रेरणा
संस्कृति सम्मान विलुप्त हो गया
सकल व्याप्त है मादकता...
ऐसे निक्रिष्ट घृणित असुरोँ का
संहार आप को करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
नारी का सम्मान नहीँ है
बस केवल अपमान है
व्यभचार और वासना मेँ
लिप्त सकल समाज है...
न जाने कहाँ खो गयी वो सती , सावित्री
अब तो शूर्पणखा का व्यभचार ही
सर्वत्र विद्यमान है...
ऐसी तामसिक मनोवृत्ति का
संहार तो करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
कुछ करो पिनाकनेय अपने शूल से अब
भेद दो सीना पिशाच का
मादकता और तामसता को
कठोर आघात देना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
हे महाकाल ये धरा ये वसुंधरा
क्षत् - विक्षत् हो जायेगी
अगली सृष्टि की रचना तो क्या होगी
ये मही इस चतुरयुगी का
भार वहन् नहीँ कर पायेगी...
निश्चय ही महाकाल अब कुछ कठिन उद्योग करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
हाय हृदय फट चुका है
इस कठिन संताप से अब
सागर मंथन से निकले पुण्य पुनीत को
देव नहीँ मानव को देना ही होगा...
तार-तार हो बिखर चुके आर्दश को
पुनः स्थापित करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
॥जय श्री महाकाल ॥
@...सुधीर पाण्डेय...@
इस काजल कलुष गरल कलियुग मेँ
सकल विषाद ज़हर व्याप्त है
मानव के अंतर विशाल मेँ
अब तो कुछ करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
इस दानवयुगी मनोवृत्ति का
विष हलाहल आप को पीना ही होगा
जिस मानव को जन्म दिया है
उसका जीवन जीना होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
एक बार इस वसुंधरा पर आओ
देखो कैसा कठिन समाज है
केवल चीत्कारोँ से भरा
अंबर विशाल रोता ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
न जाने मानव मानव का
क्योँ बैरी बन बैठा है
भाई भी भाई से न जाने
क्योँ लोहा ले बैठा है...
कहीँ निक्रिष्ट राजनीति है
कहीँ कोई पुनीत वातसल्य को त्याग
वासना मेँ लिप्त बैठा होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
जाने कहाँ लुप्त हो गयी
वो सतयुगी मार्धुय प्रेरणा
संस्कृति सम्मान विलुप्त हो गया
सकल व्याप्त है मादकता...
ऐसे निक्रिष्ट घृणित असुरोँ का
संहार आप को करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
नारी का सम्मान नहीँ है
बस केवल अपमान है
व्यभचार और वासना मेँ
लिप्त सकल समाज है...
न जाने कहाँ खो गयी वो सती , सावित्री
अब तो शूर्पणखा का व्यभचार ही
सर्वत्र विद्यमान है...
ऐसी तामसिक मनोवृत्ति का
संहार तो करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
कुछ करो पिनाकनेय अपने शूल से अब
भेद दो सीना पिशाच का
मादकता और तामसता को
कठोर आघात देना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
हे महाकाल ये धरा ये वसुंधरा
क्षत् - विक्षत् हो जायेगी
अगली सृष्टि की रचना तो क्या होगी
ये मही इस चतुरयुगी का
भार वहन् नहीँ कर पायेगी...
निश्चय ही महाकाल अब कुछ कठिन उद्योग करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
हाय हृदय फट चुका है
इस कठिन संताप से अब
सागर मंथन से निकले पुण्य पुनीत को
देव नहीँ मानव को देना ही होगा...
तार-तार हो बिखर चुके आर्दश को
पुनः स्थापित करना ही होगा...
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
हे महाकाल पुनः सागर मंथन करना ही होगा ।
॥जय श्री महाकाल ॥
@...सुधीर पाण्डेय...@